लोगों के घर लूट रहे हैं अपने घर लुटवा के लोग
जाने कब ओले पड़ जाएँ बैठे सर घुटवा के लोग
तब भी इनको चैन नहीं था अब भी इनको चैन नहीं
दीवारों से झाँक रहे हैं दीवारें उठवा के लोग ................
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हिन्दी हास्य कवि अलबेला खत्री रचित बहुभाषी शे'र-ओ-शायरी का नया ब्लॉग
अत्यंत सुन्दर!
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